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पिता:सम्पूर्ण ब्रह्मांड
जब हम छोटे थे, गिरते थे, कदम लड़खड़ाते थे।
तब वो पिता ही थे, जो हाथ थामकर चलना हमें सिखाते थे।
हमारी नन्ही- सी मुस्कान के लिए, घोड़ा बनकर पीठ पर हमें बिठाते थे।
रोने पर हमारे, हमें गले से वो लगाते थे।
वो पिता ही थे……
जो कन्धे पर हमें बिठाकर, दुनिया की सैर कराते थे।
बच्चे की हर ज़िद के आगे वो झुक जाते थे।
वो पिता का खुद भूखा रहकर, हमें खाना खिलाना।
वो हमें बिस्तर पर लिटाकर, खुद ज़मीं पर सो जाना।
वो त्यौहारों पर, ख़ुद पुराने कपड़े पहनकर हमें नये कपड़े दिलाना।
वो तकलीफ़ में होने पर भी मुस्कुराना।
इतना आसान नहीं होता पिता का ऋण चुकाना।
पिता समर्पण है, त्याग है…..
पिता जीवन का सबसे बड़ा ज्ञान है।
पिता का दुःख समझकर भी, हम उनके दुःख से अंजान है।
लाखों गलतियाँ करते है हम, फिर भी हम उनकी जान है।
और उनका निस्वार्थ प्रेम भाव तो देखिये……
फिर भी;हमें गले लगाकर कहते हैं ये मेरी संतान है।
पिता परिवार की पूर्ति है, पिता त्याग की मूर्ति है।
पिता जीवन का सहारा है, पिता बीच भवर में नदी का किनारा है।
पिता तो वो है……
जो दुनिया से जीतकर बस अपनी संतान से हारा है।
पिता का सर पर हाथ होता है, तब हर सपना साकार होता है,
तब जाकर कहीं संतान का विकास होता है।
पिता में ही सभी देवता हैं समाये…..
पिता भगवान का चेहरा हैं, बेटियों के लिए तो…..
पिता सुरक्षा का पहरा हैं।
माँ ने उँगली पकड़कर चलना सिखाया, पिता ने पैरों पर खड़ा किया।
आज हम जो भी; पिता ही तो हैं ,जिन्होंने हमें बड़ा किया।
हर पिता में दिखती मुझे, मेरे पिता की सूरत है।
पिता स्वयं ही ईश्वर की मूरत है।
जब छोड़ देता है साथ, हमारा ख़ुद का साया……
मुसीबत में जब हो जाता है, हर अपना पराया……
लेकिन; वो पिता ही थे, जिसने हर मुसीबत में साथ...