...

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प्रयेसी वर्णन
मैं शब्दसंग्रह संकुचित हो जाता
जब कृति करता तुम्हारे स्तवन में
समग्र भावों की समाविष्टि होती
तुम्हारी कल्पना के प्रयत्न में

नित्य तुम अलंकृत होती
व्याकरण के समस्त अलंकारों से
विधु तुम से स्पृहालु रहता
जो भरा स्वयं विकारों से


© कैलाश
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