...

6 views

विहग तुम्हारी कैसी दशा ?
विहग तुम्हारी कैसी दशा ?

तरुओं की ममता जर गयी
या शाखों ने त्याग दिया
रस्ता या फिर भटक गई,
घर का बोल पता बता ?

हैं निडर दीखते दृग तेरे,
भयभीत लगे क्यूं अंतर से।
काल सरीखा तम खंडित, जब
आएंगी किरणें कन्दर से।।

करुण स्वरों से चीखा था
ढोया था काली रातों को।
प्रकृति चक्र के दुर्दिन में,
सकल गृह मैं श्वान फंसा।।
विहग तुम्हारी कैसी दशा ?

पीत पर्ण के अधरों को,
तरुओं की मुस्कान निहार
जड़ता प्रीति के मारे ये,
आनन्दित रहते हैं फिर भी,
पंथो का देखाकर विहार।।

तू सहचर क्या पड़ा रहेगा
धरा का अंक नहीं तेरा,
देख आसमां, बुला रहा कि
बृहद् गगन का कर फेरा।
डारो नवजीवन का डेरा।।

#कविता
#प्राकृतिक आपदा
#जीवन
#जर्जर

© अवनि..✍️✨
०९/०१/२०२३