...

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ए मालिक
ए मालिक! देख कितना बदल गया तेरा इंसान,
रिश्ते कच्चे धागों की तरह टूट रहें है,
अपने ही अपनों को लूट रहे हैं।
आजकल घर शतरंज की बैसाख बन चुके हैं,
जहां लोग अपने- पराए का भेद भूल चुके हैं,
प्रेम की सुगंध थी जिधर, वहां सियासत की बू आती है,
जिसे कभी घर कहते थे, आज उसमे कोई रूह ना बाकी है।
ए मालिक! देख कितना बदल गया तेरा इंसान।।
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© anonymous68