...

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रुक जाओ ना
इतनी भी क्या जल्दी थी तुम्हें जाने की,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,
बेइंतहा मोहब्बत हम भी कभी जताते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,

तुम रखते अपना सिर मेरे कांधे पर,
हम तेरे बालों को सहलाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,
तुम पुकारते जब नाम मेरा हम दौड़े चले आते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,

रूम नहीं तुमको हम अपने घर ले जा कर
अपनी माँ से मिलाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,
बाहर का पिज्जा बर्गर नहीं तुम्हें अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,

होती गर कोई तकलीफ तुम्हें आंसुओं में हम भीग जाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते।
चाहते जब कभी सुकून ज़िंदगी में तुमको अपने पास पाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते,

बुढ़ापे तक तुम्हारा साथ निभाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते ।
तुम्हारे घर वाले भी मान जाते तुम थोड़ी बात तो चलाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते ।

तुम्हारे दर्द में हम खुदको रातभर जगाते,
तुम रोते तो हम तुम्हें गले लगाते,
पर तुम थोड़ा रुक तो जाते।

तुम अगर रोते तो हम तुम हँसाते,
साथ साथ हम तुम्हारे ज़िंदगी बताते,
पर तुम थोड़ा रुक तो जाते।

जिस्म नहीं रूह चाहिए थी तुम्हारी,
काश जाने से पहले तुम ये बात समझ जाते,
तुम थोड़ा रुक तो जाते।

अभी अभी तो हमने लिखना शुरू किया है,
तुम पर आगे हम गीत भी बनाते
तुम थोड़ा रुक तो जाते।
© amy_s