...

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वो भी क्या हसीन आलम होता है
वो भी क्या हसीन आलम होता है
ज़ब ढलते हुए सूरज के लिए
शाम विभिन्न रंगों से अपना श्रृंगार करती है
सूरज को अलविदा कर पंछी घर को लौटते है
उनके नन्हे नन्हे बच्चे हलकी सी चहचहाहट से उनका स्वागत करते है
शाम को तेरा छत पे आना
और मेरा ढलते हुए सूरज के साथ साथ तुझे निहारना
मैं तुम्हारी उलझें हुए बालोे मे मैं इस कदर खो जाता की
की डूबते सूरज को देखना ही भूल जाता
अब इसे चाहे ढलते सूरज के प्रति प्रेम कह लो
या फिर मेरी तुम्हारे लिए दीवानगी
इसमें ज्यादा अंतर नहीं होगा
क्योकी देखने तो मैं ढलते सूरज को आता हूँ
पर तुम्हारे जुल्फों मे उलझ कर रह जाता हूँ
वो भी क्या हसीन आलम होता है।