...

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मैं अपनी बात लिखता हूं ।
मैं आज अपनी बात लिखता हूँ,
होती है इन पर्दो में घुटन मुझे ,
मैं सरेआम औकात लिखता हूँ ।
नहीं परवाह मुझे इन बनावट के उजालों की,
मैं धूप में काली रात लिखता हूँ ।


बहुत कुछ सहा है,
बहुत कुछ सहना बाकी है,
मैं हालात को अपने हाथ लिखता हूँ ।
आसान नही है जिंदगी मेरी,
मैं जिंदगी को एक घात लिखता हूँ ।

खुद ही खुद की समझ से बाहर हूँ,
मैं ऐसा जज्बात लिखता हूं ।
कह रहा है दीवारों पर जमा मेरे ये धुंआ,
मैं बुझे दिए की बिसात लिखता हूँ ।

जो साथ मेरे हुआ, वो कोई अच्छे के लिए नहीं,
मैं खुदा की मेरे साथ खुराफात लिखता हूँ ।

लाचार कर रहा है, अपनो का ये प्यार मुझे,
मैं इसे भी अपने साथ पक्षपात लिखता हूँ ।

मैं रोज जलाता हूं खुद को हालात से,
मैं आज अपनी जात लिखता हूँ ।
घूरता हूँ आसामान को,
चीखता हूं हवाओं पर,
मैं खुद पर एक वारदात लिखता हूं ।

ना समाज मेरा है,
ना मैं इंसानों में शामिल हूं,
मैं खुद को नाजात लिखता हूँ ।

ना मुझमें कोई रहम है,
ना मैं रहम के काबिल हूं,
मैं खुद को आजाद लिखता हूं ।

❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️