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मैं महाभारत दोबारा नहीं चाहती... लेकिन लगता है तुम लोग मानोगे नहीं..
तुम हमें यूं ही काट काटकर टुकड़ों में सुलाते रहो धीरे-धीरे,
जिस दिन जगूंगी मैं,डालकर पेट्रोल तुम्हें आग में जिंदा जलाऊंगी।

मेरे बर्दास्त की हद मत देखना वरना अंजाम बहुत बुरा होगा,
मरने भी नहीं दूंगी जीते जी तुम्हारी यह जिंदगी नर्क बनाऊंगी।

मेरी खामोशी को शायद मेरी कमज़ोरी मान बैठे हो तुम लोग,
तुम सब राक्षस बन गए हो, अब मैं भी काली बन जाऊंगी।

फिर से कह रही हूं अति मत करो,इंसान हो,इंसान बनके रहो,
वरना त्याग दूंगी ये धैर्य अपना, मैं भी अस्त्र-शस्त्र उठाऊंगी।

हम हिंदुस्तान की नारियां यहीं के नियमों का पालन करती हैं,
पहले छेड़ते नहीं किसी को,बाद में छोड़ना तो बिल्कुल नहीं चाहूंगी।

हममें संवेदना बहुत है,दूसरों के दर्द तक में रो दिया करते हैं,
लेकिन नरसंहार का खेल शुरू तुमने किया है,ये युद्ध जीतके दिखाऊंगी।

हमें ना गालियां आती थीं, ना ही यूं किसी को धोखा देना,
तुमसे ही सीखा है ये सबकुछ,अब ये सब तुम्हीं पर आजमाऊंगी।

हम स्त्रियों ने हमेशा तुम लोगों को ईश्वर माना और प्रेम को आराधना,
लेकिन तुम निकले हैवान,अब मैं भी तुम्हें आग में सती कराऊंगी।

बड़ा गणित लगाकर चाकू से काटते हो ना तुम लोग हमें,
तुम्हारे मरते वक्त वहीं रहूंगी,तुमसे तुम्हारी आखिरी सांसे गिनवाऊंगी।

गलती तमाशा देखने वालों की नहीं,ये इंसानियत के पतन का आरंभ है,
बुराई का विनाश कर,अच्छाई के आरम्भ का दीया मैं जलाऊंगी।

हम मर्यादा से सजी मौन गुड़िया हुआ करते थे कभी,
बोलने पर मजबूर किया है,अब तुम्हारी बैण्ड बजाऊंगी।

ध्यान रखना तुम,मैं भी जिस दिन मैदान में उतर पड़ी...,
तुम जो कभी काटते,कभी उबालते हो,ये सब तुम्हारे साथ भी दोहराऊंगी।

आकांक्षा मगन "सरस्वती"

#विश्वास_के_खूनी
#बेहयाई

© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”