...

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"करवटें और ख़्याल"
ये रात की तन्हाई में,
करवटें और ख़्याल..!
बेचैन मन करता ख़ुद से,
तरह तरह के कई सवाल..!

अपनों का रवैया,
डूबती जीवन रुपी नैया..!
तक़दीर के मारे हम बेचारे,
होते रहे बदहाल..!

अपनों का षणयंत्र,
कैसा तंत्र मंत्र..!
निश्चित कर रहा है,
मेरी मृत्यु अकाल..!

कड़वी जुबाँ घोले ज़हर सा,
जीवन जीना हुआ मुहाल..!
बदलते चेहरे मुखौटों के पहरे,
फ़रेब का रखते मायाजाल..!

ज़िन्दगी ज़हन्नुम,
जलती चित्त की चिता..!
औरों को ख़ुश करने में,
दुःखों में बीते सालों साल..!
© SHIVA KANT