...

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शादियों का मौसम है ..!!!
*शादियों का मौसम है !*

तिलक है, बारात है, मेंहदी है, संगीत है, रोशनी है, आतिशबाजी है, बैंड बाजा है, लाईट है, डी जे है, कैटरर है, स्टॉल है, सब कुछ तो है ...

पर

जनवासा नहीं है, पंगत नहीं है, पत्तल नहीं है, पीयर धोती पहने समधी नहीं है, गालियां देती समधिनें नहीं हैं ।

मुहब्बत नहीं है, प्यार नहीं है, मनुहार नहीं है,
नाई का न्योता नहीं है ।
व्हाट्सएप पर निमंत्रण है ।

सारे पंडाल एक जैसे हैं । आप कहीं भी जाकर खाकर आ सकते हैं ।

ना मेजबान का पता है ।
ना मेहमान की खबर है ।
ना कोई आपको पहचानता है,
ना आप किसी को जानते हैं ।

नाच लीजिए ।

घूमते बेयरों के हाथ से कुछ ले लीजिए ।

बारात आई नहीं है ।

वरमाला हुई नहीं है ।

बस आपको किसी को लिफाफा थमाकर निकल जाना है ।

और तीन जगह जाना है ।

यही तो आज का जमाना है ।

जेब नम है ।

संगीत मध्यम है ।

खाने में कहां दम है !

आ गये । यह क्या कम है !

अरे भाई !

*शादियों का मौसम है !*

© The Introvert Guy...!!