...

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टूटते ख्वाब
मासूम दिल की हसरतों को,अश्कों में ढलते देखा है।
महफिल के चिरागों से ही,महफिल को जलते देखा है।।
हो आशियां चमन में ,अब आरजू नही है ।
फूलों के तलबगारों को,खारों पर चलते देखा है।।
चमके हुये सूरज की,क्या इबादत करे कोई ।
रात के सायों में ,उसको भी ढलते देखा है ।।
अब खौफ है खिंजा का और न बहारों की आरजू है।
हमने बहारों के दायरे में ,चमन को लुटते देखा है।।