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टूटते ख्वाब
मासूम दिल की हसरतों को,अश्कों में ढलते देखा है।
महफिल के चिरागों से ही,महफिल को जलते देखा है।।
हो आशियां चमन में ,अब आरजू नही है ।
फूलों के तलबगारों को,खारों पर चलते देखा है।।
चमके हुये सूरज की,क्या इबादत करे कोई ।
रात के सायों में ,उसको भी ढलते देखा है ।।
अब खौफ है खिंजा का और न बहारों की आरजू है।
हमने बहारों के दायरे में ,चमन को लुटते देखा है।।
महफिल के चिरागों से ही,महफिल को जलते देखा है।।
हो आशियां चमन में ,अब आरजू नही है ।
फूलों के तलबगारों को,खारों पर चलते देखा है।।
चमके हुये सूरज की,क्या इबादत करे कोई ।
रात के सायों में ,उसको भी ढलते देखा है ।।
अब खौफ है खिंजा का और न बहारों की आरजू है।
हमने बहारों के दायरे में ,चमन को लुटते देखा है।।
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