...

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एक पिता के रूप में दिया है.....
तेरी आँखों में फ़िक्र देखी
माथे पर सिकन देखी
दिल में खुद से ही
कोई लड़ती जंग देखी
देख तेरा दर्द
दिल मेरा डर सा गया
ये थोड़ा थोड़ा सा मर भी गया,
क्या कहूं समझ नहीं आया
जब तुझको
खुद के लिए ही डरा पाया
तकदीर को कोसुं
या कोई हल सोचुं
इसी उलझन में
दिल मेरा उलझा रह गया,
आज दिल में ख्याल आया
होठो पर कई सवाल आया
क्या मैं इस लायक हूं
जो तू इतनी फिक्र करता है
जो तेरे होठों पर
बस मेरा ही जिक्र रहता है,
शायद इसीलिये तुझको
एक पिता का नाम दिया है
तू लड़ जाये हमारी खातिर
चाहे इस दुनिया ने
तुझको कितना ही बदनाम किया है,
मैं खुश हूं..
ख़ुदा का भी शुक्रगुज़ार हूं
जो तुझको उसने
मुझे एक पिता के रूप में दिया है।


© Sankranti chauhan