क्षण-भंगुर
यह संपूर्ण धरा
अनंत मुझमें बहती
जल प्रवाह लेकर ,
नदी, सागर ढूंढ़ती
स्वयं यर्था शक्ति से
अस्तित्व पा लेती ।
मैं प्रकृति से विलग कैसे
रक्त-मज्जा-अस्थि से बनीं
यह काया क्षण-भंगुर है
कालचक्र में समाप्त होगी ,
कण-कण में विस्तृत...
अनंत मुझमें बहती
जल प्रवाह लेकर ,
नदी, सागर ढूंढ़ती
स्वयं यर्था शक्ति से
अस्तित्व पा लेती ।
मैं प्रकृति से विलग कैसे
रक्त-मज्जा-अस्थि से बनीं
यह काया क्षण-भंगुर है
कालचक्र में समाप्त होगी ,
कण-कण में विस्तृत...