...

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पीड़ा पुस्तक की
आज सुबह एक धूल भरी अलमारी से
दबे हुए स्वर में
चीखने की आवाज आई थी,
मैंने अलमारी को खोला
उसमे एक सुंदर सी पुस्तक
धूल के नीचे दबी पड़ी थी
वो मुझसे कुछ कहना चाहती थी
पर हालत उसकी नाजुक थी,
मैंने उसको हाथ लगाया
वह फूट-फूटकर रोईं थी,
वह जोर-जोर से चीखी थी पर
कुछ बोल न पाई थी,
धूल से उसको मुक्त किया
अपने सीने से लगाया जब
वह करुण स्वर में मुझसे बोली
आज कैसे मेरी याद आई है,
मै वर्षों से चीख रही हूँ,पर
तुम तो तकनीकी में खोए हो
हमको भी जरा याद करो
शायद कुछ गुण,
हम में भी हो सकते हैं।
मैने पुस्तक को खोला
उसके शब्द सुनहरे थे
फोन की PDF से अच्छे
उसके शब्दों के भाव थे,
फोन में सब कुछ है लेकिन
वह पल भर मे गायब हो सकता है
पुस्तक है वह जन्नत जो
हमारी सबसे सच्ची साथी है ।





फोन का उपयोग कीजिए मगर पुस्तकों को मत भूलिए ।