पक्षियों में समाजिकता
#अनुपस्थितगूँज
ये कविता भी किसी के न होने पर
खाली कुर्सी देखकर उदास होने की है।
आज बाहर बैठी धूप में सब्जी काट
रही थी मै,
यकायक एक बिल्ला आया और मारे
गुस्से से चिल्ला रहा था,
जैसे उसका कोई अपना बिछड़ गया था,
इधर उधर सूंग सूंग कर कुछ अपना
ढूंढ रहा था,
पर कुछ भी उसे नज़र आ नहीं रहा था
बस गुस्से से हाथ मल रहा था,
इतने में कुछ चिड़ियाओं का समूह आया
और उसके आस पास ऊपर पेड़ों पर से
बिल्ले पर चीं चीं चीं चीं करके जैसे उसे
कुछ बतलाना चाह रही थी,
पर...
ये कविता भी किसी के न होने पर
खाली कुर्सी देखकर उदास होने की है।
आज बाहर बैठी धूप में सब्जी काट
रही थी मै,
यकायक एक बिल्ला आया और मारे
गुस्से से चिल्ला रहा था,
जैसे उसका कोई अपना बिछड़ गया था,
इधर उधर सूंग सूंग कर कुछ अपना
ढूंढ रहा था,
पर कुछ भी उसे नज़र आ नहीं रहा था
बस गुस्से से हाथ मल रहा था,
इतने में कुछ चिड़ियाओं का समूह आया
और उसके आस पास ऊपर पेड़ों पर से
बिल्ले पर चीं चीं चीं चीं करके जैसे उसे
कुछ बतलाना चाह रही थी,
पर...