कविता...
तुम्हारें सिवा भीं
जीवन कीं कहानी
मुख्तसर हीं थीं हमारीं
जब सें तुम्हें दिल में बसायां हैं
खुद हीं अपनेआप में
कहीं गुमनाम सें हो गयें हैं
तुम्हें यकींन हों या ना हों
यूं सबूतों में हमारीं
मोहब्बत कीं वफादारी
ना कभी भीं ढूँढना तुम...
बस पलकें बंद करकें
अपनें आप में झांककर देखना
वहीं मिलेंगें हम...
तुम्हारें सफर कीं
आंखरी मंजिल बनकर
तो फिर सें कहानी हमारीं
मुख्तसर बन जायेगीं....
शोभा मानवटकर....
जीवन कीं कहानी
मुख्तसर हीं थीं हमारीं
जब सें तुम्हें दिल में बसायां हैं
खुद हीं अपनेआप में
कहीं गुमनाम सें हो गयें हैं
तुम्हें यकींन हों या ना हों
यूं सबूतों में हमारीं
मोहब्बत कीं वफादारी
ना कभी भीं ढूँढना तुम...
बस पलकें बंद करकें
अपनें आप में झांककर देखना
वहीं मिलेंगें हम...
तुम्हारें सफर कीं
आंखरी मंजिल बनकर
तो फिर सें कहानी हमारीं
मुख्तसर बन जायेगीं....
शोभा मानवटकर....