दर्द और यादें
यूं ज़िन्दगी को संवार लूं,
ख़्वाबों को अंदर ही मार लूं।
वो तो अब लौटने से रहा,
तन्हा ही वक़्त गुजार लूं।
कोई ख़ुशी से दे प्यार तो लूँ,
क्यों उधार ये प्यार लूँ।
रात को जागकर काटूं,
दिन और ढंग से पार लूं।
किसी को क्या दूं आवाज़,
हिज़रत ही ख़ुदपे धार लूँ।
दर्द के अल्फाज़
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ख़्वाबों को अंदर ही मार लूं।
वो तो अब लौटने से रहा,
तन्हा ही वक़्त गुजार लूं।
कोई ख़ुशी से दे प्यार तो लूँ,
क्यों उधार ये प्यार लूँ।
रात को जागकर काटूं,
दिन और ढंग से पार लूं।
किसी को क्या दूं आवाज़,
हिज़रत ही ख़ुदपे धार लूँ।
दर्द के अल्फाज़
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