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ग़ज़ल 8 : तुम्हें चाहता हूंँ तुम्हें चाहता हूंँ
तुम्हें चाहता हूंँ तुम्हें चाहता हूंँ
घड़ी दो घड़ी की वफ़ा चाहता हूंँ
तिरी ये इनायत सदा चाहता हूंँ
लबों पे तुम्हारी जफ़ा चाहता हूंँ
न तारे सितारे न दिलकश नज़ारे
तुम्हीं पे नज़र फेरना चाहता हूंँ
य दिल की लगी है मुझे जो लगी है
दवा कर मिरी मैं दवा चाहता हूंँ
हुई क्या ख़ता है भला क्यों ख़फ़ा हो
ख़तावार हूंँ ग़र सज़ा चाहता हूंँ
गुलाबी शराबी महकता बदन ये
इन्हीं के नशों में डुबा चाहता हूंँ
अता कर बता कर जहांँ से जुदा कर
जरा सी तुम्हीं से वफ़ा चाहता हूंँ।।
© Pooja Gaur
घड़ी दो घड़ी की वफ़ा चाहता हूंँ
तिरी ये इनायत सदा चाहता हूंँ
लबों पे तुम्हारी जफ़ा चाहता हूंँ
न तारे सितारे न दिलकश नज़ारे
तुम्हीं पे नज़र फेरना चाहता हूंँ
य दिल की लगी है मुझे जो लगी है
दवा कर मिरी मैं दवा चाहता हूंँ
हुई क्या ख़ता है भला क्यों ख़फ़ा हो
ख़तावार हूंँ ग़र सज़ा चाहता हूंँ
गुलाबी शराबी महकता बदन ये
इन्हीं के नशों में डुबा चाहता हूंँ
अता कर बता कर जहांँ से जुदा कर
जरा सी तुम्हीं से वफ़ा चाहता हूंँ।।
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