नारी: आज और कल
"नारी:आज और कल"
आज और कल फर्क सालों का हुआ..
निकलती नहीं घरों से आज घरों में भी कायनात है,
बदला हुआ जमाना देखो पर बदली ना तुम्हारी सोच है,
नारे लेकर बढे अभिमानी घूमते हो तुम सड़कों पर,
दोस क्या प्रशासन का जब सोच तुम्हारी है निर्बल,
दोसी तो बन गयी अब वह जिसने यह संसार रचा,
जिसके होने से हर घर चिराग जला ,
तुम्हारी पापी नजरों से वह आज घरो में कैद पड़ी,
डरी धमकी सी वो नारी उस जहरीले अटैक से घबरा रही,
आज और कल फर्क इतना हुआ..
कल तानो से वार किया तुमने, आज हथियार ढूंढ लिया,
दुसरो की बात मत करो, तुमने खुद की ज्योति ही बुझाई है,
खुदकी अश्लील नजरों से तुमने उसे असहाय का बोझ दिया,
उसके अशिक्षित इरादों के पीछे, शिक्षित गंवार मानव का हाथ हुआ,
सोच खुद की ठीक नहीं, उंगली उसके मासूम चरित्र पर उठाई,
रोज रोज की खबरे सुनकर उसने खुद में परिवर्तन लाया है,
जिस दिन भड़केगी ज्वाला उसमे नाश फिर तुम्हारा है,
क्या आज और क्या कल अब फर्क इतना हो गया…
कल चुप्पी से गुजरी ,अब चुप्पी को उभारा है,
विश्वास हर किसी से उठाकर खुदकी आत्मरक्षा का प्रत्यन उठाया है… ✍
#नारीवाद_एक_प्रथा
#international_womens_day
© Deepika Agrawal_creative