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नारी: आज और कल

"नारी:आज और कल"

आज और कल फर्क सालों का हुआ.. 

निकलती नहीं घरों से आज घरों में भी कायनात है, 

बदला हुआ जमाना देखो पर बदली ना तुम्हारी सोच है,

नारे लेकर बढे अभिमानी घूमते हो तुम सड़कों पर, 

दोस क्या प्रशासन का जब सोच तुम्हारी है निर्बल, 

दोसी तो बन गयी अब वह जिसने यह संसार रचा, 

जिसके होने से हर घर चिराग जला , 

तुम्हारी पापी नजरों से वह आज घरो में कैद पड़ी, 

डरी धमकी सी वो नारी उस जहरीले अटैक से...