आँखें
आँखें कितना कुछ बोल जाती हैं,
दिल के राज़ खोल जाती हैं,
गहराईयों में उतर के,
सपने बटोर जाती हैं।
पानी की बूंदो को, अपनी पलको में सजा कर,
सपने बटोर लेती हैं,
और पलकें झुका के सब भूल भी जाती हैं।
चाँद को देख के शर्मा जाती ,
सूरज की किरणों का सामना करती ....
बारिश में भीगते हुए, अपने ग़मों को छुपा लेती ।
आंखें कितना कुछ बोल जाती हैं,
दिल के राज़ खोल जाती हैं…..
-शीतल
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