...

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इलाही ऐसी इनायत होगी
एक शाम होगी मलंग सी
हम एक दूजे संग मनाएंगे
दुनिया की रहबरी से दूर
हम शमा बेफ़िक्री की जलाएंगे

वफ़ा हमसे वाबस्ता होगी
हम जफ़ा फ़ना कर जाएंगे
एक रात हमारा रास्ता होगी
हम आरिश तक आज़माएंगे

यारा कभी हम काफ़िर होंगे
दुआ होगी इकट्ठे हों
अगर कभी मुसाफ़िर होंगे
तो दुआ होगी कि भटके हों

कोई फितरत हमारी हमसे पूछे
तो जवाब ज़रा हटके हो
हर महफ़िल हमारी राहें देखे
हम जश्न बाज़ी में अटके हों

इलाही ऐसी इनायत होगी
कब हम याराना मनाएंगे
यारी की लपटों से हम
खुद्दारी राख कर जाएंगे
© Harf Shaad



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