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प्रतिबिम्ब
#दर्पणप्रतिबिंब
देखा जो दर्पण में प्रतिबिंब अपना
यूँ लगा देख रही हूँ जैसे कोई सपना !
चेहरा लगा कुछ बदल बदल सा गया है
बचपन की मायूसी से कुछ परिपक्व हो गया है!
बातों बातों में पूछे मैंने दर्पण से कुछ सवाल
क्यों दिखाता है बदलाव उठ जाते हैं बवाल !
आँखों की कोरों में आँसू भी दिख गये
ख़ुद से ज़िंदगी में गुज़रे कुछ सवाल उठ गए!
हर पल ज़िंदगी का खिसकता चला गया
तू दर्पण आज भी वहीं का वहीं ठहर गया !
हर रोज़ दिखाई तूने कितनी बदलती तस्वीर
मैं ही ना समझ सकी अपनी बदलती तक़दीर!
नज़र ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव पर ठहर गई ,
ख़ुद की मासूमियत को आलिंगन में भर गई !
क्या बदलाव भी इतने ख़ूबसूरत हो सकते हैं,
मन से मान लो तो मुसलसल भी हो सकते हैं!
© गुलमोहर
देखा जो दर्पण में प्रतिबिंब अपना
यूँ लगा देख रही हूँ जैसे कोई सपना !
चेहरा लगा कुछ बदल बदल सा गया है
बचपन की मायूसी से कुछ परिपक्व हो गया है!
बातों बातों में पूछे मैंने दर्पण से कुछ सवाल
क्यों दिखाता है बदलाव उठ जाते हैं बवाल !
आँखों की कोरों में आँसू भी दिख गये
ख़ुद से ज़िंदगी में गुज़रे कुछ सवाल उठ गए!
हर पल ज़िंदगी का खिसकता चला गया
तू दर्पण आज भी वहीं का वहीं ठहर गया !
हर रोज़ दिखाई तूने कितनी बदलती तस्वीर
मैं ही ना समझ सकी अपनी बदलती तक़दीर!
नज़र ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव पर ठहर गई ,
ख़ुद की मासूमियत को आलिंगन में भर गई !
क्या बदलाव भी इतने ख़ूबसूरत हो सकते हैं,
मन से मान लो तो मुसलसल भी हो सकते हैं!
© गुलमोहर
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