...

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~ अजनबी ~
ओ! अजनबी
कुछ तुम अपने से लग रहे हो
अब धीरे धीरे
जैसे मेरे ज़िन्दगी में बढ़ रहे हो,

खुदा ने ही तुमको
मेरे किस्मत के लकीरों में लिखा है
अब ज़िन्दगी के मंजिल में
जैसे मेरे हमसफ़र बन रहे हो,

ये पूरी कायनात की साज़िशो से
हम दोनों अनजान है
अब हम दूर भी रहे तो
जैसे हमारी परछाई साथ चल रहे हो,

हम समय के हर उतार चढ़ाव में
हमेशा साथ रहेंगे
अब हमारी ज़िन्दगी भी
जैसे एक- दूसरे से ये वादा कर रहे हो,

मोहब्बत में तुम्हारे
ये दुनियां भुला दी हमने
अब दिल से होकर
जैसे मेरे रूह में उतर रहे हो,

आओ मेरे पनाहों में
हम दो से एक हो जाए
अब लगता है जैसे हम दो जिस्म
एक जान बन रहे हो।
© मेरे अल्फाज़....🦋