...

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कहता है गुलज़ार✍
खींची जमाने ने चुन्नी,
हाथों को पकड़ पकड़ के,
खो गई बाज़ार में,
गलियां भटक भटक के,
खो गई कहीं चुन्नी,
मुझसे सरक सरक के,
बीत गई रात में,
नींदें खटक खटक के,
चूड़ी भी टूटी हाथों से,
कांच की चटक चटक के,
बहते रहे आंसू,
आंखों से टपक टपक के,
गुजरी फिर रात मेरी,
तारो संग, लटक लटक के,
यादों ने तेरी रुलाया बहुत,
फफक फफक के,
कहता है गुलज़ार, रो मत,
ना लौटे, ना लौटेंगे अब मीत तेरे,
भूल चुके हैं गालियां तेरी,
दूसरे की गलियों में,
मटक मटक के।
© a_girl_with_magical_pen