कहता है गुलज़ार✍
खींची जमाने ने चुन्नी,
हाथों को पकड़ पकड़ के,
खो गई बाज़ार में,
गलियां भटक भटक के,
खो गई कहीं चुन्नी,
मुझसे सरक सरक के,
बीत गई रात में,
नींदें खटक खटक के,
चूड़ी भी टूटी हाथों...
हाथों को पकड़ पकड़ के,
खो गई बाज़ार में,
गलियां भटक भटक के,
खो गई कहीं चुन्नी,
मुझसे सरक सरक के,
बीत गई रात में,
नींदें खटक खटक के,
चूड़ी भी टूटी हाथों...