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कोमल काया
नख से शिख तक कांचन काया,
मुख पर जैसे सोम का साया,
अधर बिंदु में शब्द छुपा एक,
लज्जामयी मैं भूमि तकूं बस,

उर पुलकित उरोज पल्लवित,
तन पे वसन ना अंगिया की छाया,
देखो! रश्मिरथी अम्बर चढ़ आया,
कैसी निखरी यह स्वर्णिम काया,

भ्रमर कुंज - कुंज कलियां चूमें,
हृदय बाण मेरे तन पर छोड़ें,
तटिनी तट जल से भीग के आई,
अंग - अंग मेरा...