...

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कुछ ऐसी अपनी कहानी रही
न सुनाने को वो पुराना किस्सा रहा
न अब कोई दिलचस्प कहानी रही
न रहे तुम बेताब से आशिक वहीं
न अब मैं वही दीवानी रही।।
कुछ अरसे चली, फ़िर गुम हो गई
वो जन्नत की सी आदतें जाने कहाँ खो गई
रहा पास अपने तो बस वो ख़्वाब देखते रहने का अहसास
अब तो न ख़्याल बचे न याद कोई शायरी मुहज़ुबानी रही
जगह बदला, ख्वाहिशें बदली बदल गई मिलने की वजह भी
लग रहा मिल चुकी हूँ इस कायनात से कभी पहले भी
पर अपनेपन का कोई अहसास नहीं शायद ये मंज़र भी नहीं पुरानी रही।।
कुछ बेख्याल सी आंखें कुछ अनकही सी खामोशी
कुछ सर्द हवा इन रातों की
कुछ याद आता वो बचपन का सफ़र कुछ आवाज़ उन बीते बातों की
रह रह के रूह को छूती तो है लेकिन अब अब कहाँ वो बचपन की सी कहानियाँ सुनाने वाली नानी रहीं
बीत गई गुज़रते वक्त के साथ जो बची वो वक्त की सिर्फ़ निशानी रही
बस कुछ यूं ही हमारी कहानी रही
न मिल पाए हम न हो पाए दूर
चलती रही रूक रूक कर राहों में
ढूंढने पर बाद में पता चला
जहां रुकी वहां थोड़ी वीरानी रही
बाकी सब तो वैसा ही है
बीत गया है कुछ लम्हा कुछ अतीत वहीं पर ठहरा है
जब भी जाओ गलियारों से है कल की आवाज सी आती
शायद वहां वक्त के अल्फ़ाज़ों का ही पहरा है
हां ढूँढा था मैंनें कई दफ़ा इस बीते कल की चादर में
ज़रा देख आओ ना तुम भी, क्या तुम्हें भी दिखता वही चेहरा है
कुछ हक़ीक़त कुछ भ्रम से भरा लेटा हुआ कोई अनछुआ सा
कुछ समझी कुछ समझ से परे जो दफ़न हुआ ज़रुर ही राज़ कोई गहरा है
कभी रो देती कभी सुनाती है हंसकर
गौर से देखो तो भरे हमेशा ही आंखों में पानी रही
उस गुज़रे वक्त के रेल से क्या पूछते हो,,,,
सुनो...
उस ख़ुदा ने देखा था सब कुछ
अब किससे कौन सी बात छिपानी रही
जो ना खत्म हुई, ना फ़िर से हो सकती है शुरू बस वही कुछ अनकही सी अपनी कहानी रही।।
© Princess cutie

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