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शिक्षकों की महत्ता (संस्मरण)
समाज में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है। यहाँ विभिन्न प्रकार की भाषाओं व विषयों के लिए अलग-अलग शिक्षक निर्धारित होते हैं। इन्हीं में से एक शिक्षक हैं – 'हिंदी के शिक्षक!'
शुरुआत से ही हिंदी के शिक्षकों को उनके कार्य की पूर्ण सराहना नहीं मिल पाती है। पता नहीं क्यों उनके बारे में लोगों की यह सोच होती है कि – 'हिंदी इतनी सरल है। इसे पढ़ाना कोई कठिन कार्य नहीं। हिंदी के शिक्षक तो मात्र आराम करते हैं। उनका कार्य इतना सरल जो होता है।' इस सोच का लोगों के पास कोई कारण नहीं होता। फिर भी क्यों वे सभी हिंदी शिक्षकों की मेहनत क्यों नहीं देख पाते?
ऐसे एक शिक्षक 'राजकुमार सर' 10वीं कक्षा में मेरे गुरु थे। उनकी आँखों में मुझे हमेशा एक खालीपन दिखता था। समय के साथ देश का झुकाव अंग्रेजी की ओर हो रहा है। सर को देखकर ऐसा लगता कि हिंदी के पीछे छूटने का सारा दर्द उनकी आँखों में सिमट आया हो।
लेकिन मेरी हिंदी में अधिक रूचि देखकर वह हमेशा मुस्कुरा देते। वह हमेशा मुझसे यही बात कहते कि – 'जब तुम्हारी हिंदी इतनी मजबूत है तो तुम्हें इसका लाभ उठाना चाहिए। हिंदी को हमेशा सर्वप्रथम रखो।'
सर की यह बात हमेशा मेरे मन में कौंधती व मैं सोच में पड़ जाती कि हिंदी को सर्वप्रथम कैसे रखा जाए? मैं इसका लाभ कैसे उठाऊँ?
समय के साथ मैंने लेखन अभ्यास शुरू किया। जब मैंने प्रथम रचना लिखी, तब कक्षा में सभी ने उसकी बड़ी प्रशंसा की। यह प्रशंसाएँ मेरे लिए सीढ़ी बनी। आज जब स्वयं को लेखन के इस मुकाम पर देखती हूँ तो मन में बस यही बात आती है कि – 'मेरी सफलता में सबसे बड़ा योगदान मेरे शिक्षक राजकुमार सर का है। जिसके लिए मैं उनका जितना भी धन्यवाद करूँ कम ही होगा।'

© सृष्टि स्नेही


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