बेजुबां जीव...!!!!
बेजुबां की है एक ये दास्तां……
था कुछ ऐसा उसके जीवन का कारवां।
रोज़ आता है वो घर पर…..
स्नेहपूर्ण आँखों से है देखता,
रोटी की आस लेकर, वो हमारे दर पर बैठता।
चोट लगने पर; वो हमारे पास आ जाता था……
बिना कुछ बोले वो, कुछ इस तरह अपना दर्द बयां कर जाता था।
इंसान को सब कुछ मिल जाए; कभी खुश नहीं होता…..
ज़रा जानवरों से सीखिये, जो इंसानों की तरह सभी को दिखाकर नहीं रोता।
हम अपनी स्वतंत्रता में भी कभी न हुए खुश…..
वो जीवन भर परतंत्र होकर भी ; न की शिकायतें न हुए मायूस।
हम बोलते हैं, हम करते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त…..
परन्तु, आज खुद से पूछिये?
हम जानवरों के प्रति क्यों हैं, इतने सख्त?
वो बोल नहीं सकते….
इसलिये, हम समझते हैं उन्हें निर्जीव….
उनके बिना, पृथ्वी न होगी कभी सजीव….
आखिर; वो भी हैं इस पृथ्वी के जीव।
याद रखिये, ईश्वर ने हमें एक समान बनाया है….
गर वो न हो, तो रह जायेगा पृथ्वी पर सिर्फ स्वार्थियों...
था कुछ ऐसा उसके जीवन का कारवां।
रोज़ आता है वो घर पर…..
स्नेहपूर्ण आँखों से है देखता,
रोटी की आस लेकर, वो हमारे दर पर बैठता।
चोट लगने पर; वो हमारे पास आ जाता था……
बिना कुछ बोले वो, कुछ इस तरह अपना दर्द बयां कर जाता था।
इंसान को सब कुछ मिल जाए; कभी खुश नहीं होता…..
ज़रा जानवरों से सीखिये, जो इंसानों की तरह सभी को दिखाकर नहीं रोता।
हम अपनी स्वतंत्रता में भी कभी न हुए खुश…..
वो जीवन भर परतंत्र होकर भी ; न की शिकायतें न हुए मायूस।
हम बोलते हैं, हम करते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त…..
परन्तु, आज खुद से पूछिये?
हम जानवरों के प्रति क्यों हैं, इतने सख्त?
वो बोल नहीं सकते….
इसलिये, हम समझते हैं उन्हें निर्जीव….
उनके बिना, पृथ्वी न होगी कभी सजीव….
आखिर; वो भी हैं इस पृथ्वी के जीव।
याद रखिये, ईश्वर ने हमें एक समान बनाया है….
गर वो न हो, तो रह जायेगा पृथ्वी पर सिर्फ स्वार्थियों...