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मन के विचार से
आज लिखा है कुछ मन के विचार से
हसरतों का चाँद है दूर आसमान पे
पूछती हूँ कब मिलोगे
मुस्कुरा के कहता है जब
मेहनत की सीढ़ी पर चढ़ोगे
नमी आँखों की छुपाकर
रह जाती हूँ यही बताकर... हाँ
ए चाँद तुझे मालूम ही नहीं
जकड़ लेती है उस सीढ़ी को
मुश्किलें रोज़ रोज़ और
बीत जाता है एक और दिन
रात को होता है रौशन फिर से तू
तुझे देखते देखते कब
सुना जाती है नींद लोरियाँ तब
दौड़ती हूँ फिर एक और सुबह
चढ़ने के लिये उस सीढ़ी पर
लेकिन अपनी बेलें मुश्किलें
बढ़ा चुकी होती है तब तक
लिपट जाती है उस सीढ़ी से
मानो रास्ता नहीं देगी कभी
एक गहन सोच गहन अध्ययन
करके फिर एक तैयारी
सीढ़ी के अहाते में
आ ठहरती है अपनी सवारी
मुश्किलें काटकर बढ़ चले आगे
हसरतों के चाँद से मिलने को
नाजाने कितनी रातें हम जागे
दूर अभी भी माना है मंज़िल
हौसले उम्मीदें नहीं हुए बोझिल
तय है रौशन होना कोहिनूर का
अँधेरे रास्ता ना रोक सके नूर का
NOOR E ISHAL
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