...

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मजदूर
वो मजदूर न हुए,
मजबूर हो गयें।

हम सुकून की बाहों में खोए रहें,
वो थक कर चूर हो गयें।

हम विकास की चिंता से घिरें रहें,
वो रोटी के लिए धूल हो गयें।

हम बहादुरी की बातें करते रहें,
वो अपनी हिम्मत के लिए मशहूर हो गयें।

वो मजदूर न हुए,
मजबूर हो गयें।