दर्पण की माया
दर्पण में देख प्रतिबिंब को अपने, पक्षी खुद से लड़ता है!
पक्षी का दोष नहीं इसमें, दर्पण की यह सब माया है!!
पक्षी की हर चोट में दर्पण, उसको ही चोट लगाता है!
दर्पण की इस माया को पक्षी, हाय क्यों न समझ पाया है!!
माया के पाश में घिरा पक्षी, व्याकुल अधिक हो जाता है!
हरकत देख पक्षी की दर्पण, उतना ही उसे खिजाता है!!
जितना पक्षी...
पक्षी का दोष नहीं इसमें, दर्पण की यह सब माया है!!
पक्षी की हर चोट में दर्पण, उसको ही चोट लगाता है!
दर्पण की इस माया को पक्षी, हाय क्यों न समझ पाया है!!
माया के पाश में घिरा पक्षी, व्याकुल अधिक हो जाता है!
हरकत देख पक्षी की दर्पण, उतना ही उसे खिजाता है!!
जितना पक्षी...