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कर्ण व अर्जुन का अंतिम युद्ध।❤️❤️
चलो आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र चलते हैं,
युद्ध के निर्णायक दिन की बात करते हैं,
एक तरफ कृष्ण संग अर्जुन अनुज,
सामने हैं दानवीर जो सूर्य तनुज।

जहां गरजता अर्जुन का गांडीव चले,
यूं लगे कि जैसे कोई काल चले,
राधेय लिए विजय धनुष जहां यूं लगे कि,
जैसे विजयमाला होगी दुर्योधन के गले।

कुरुकुल के उस के दीपित दीप ने,
बोला सारथी शल्य से योद्धा निर्भीक ने,
चलो ले चलो उस जगह मेरा रथ,
जहां खड़ा हो अर्जुन अपना गांडीव ले।

लो रथ भगवान के सम्मुख पहुंचने वाला है,
मयंक आज भाई भाई से भिड़ने वाला है,
देखो कितना भयानक तांडव मचने वाला है,
एक तरफ स्वयं इंद्र सामने कर्ण मतवाला है।

कर्ण बोला हे! कुंती पुत्र सावधान हो,
चल शर संधान कर तो कुछ काम हो,
आज जब तक न रुकेगी ये बाणों की वर्षा,
जब तक हम में से न एक का अमर नाम हो।

कौन्तेय बोला क्रुद्ध हो,हे! सारथीपुत्र,
ले गांडीव के प्रत्यंचा की टंकार सुन,
हे!राधेय अब क्षणिक विलंब न कर,
तू बस अपने मृत्युलोक जाने के सपने बुन।

हे वीर योद्धा अर्जुन तो अब इस,
विजय धनुष की ललकार सुन,
चिल्लाने से कोई वीर नहीं होता,
वीरों के बाणों में होते हैं उनके गुण।

लो शुरू हो गया घमासान,
आज कुरुक्षेत्र बना है शमशान,
वीर दोनों लड़ पड़े सीना तान,
एक से एक दिखे तीर संधान।

मांगी शरण विषधर अश्वसेन ने,
किंतु राधेय कहां बल भरते हैं?
कहा जय पराजय तो क्षणिक हर्ष है,
वीर अपने बल पर जय अर्जित करते हैं।

लेकिन क्या कहें जब नियति ने उसे छला है,
नियति के कारण ही पराए घर में पला है,
हाय कितनी तड़पी होगी वो कुंती मां की कोख,
जब पता चला होगा कि कर्ण मेरा ही लला है।

ये देखो आज फिर नियति ने उसे छल लिया,
कर्ण को ब्राह्मण के श्राप का फल दिया,
जिस रथ पर चढ़ा है वो योद्धा नियति देखो,
उसे कीचड़ ने अपनी बाहों में जकड़ लिया।

उतरा है वो रथ से जो पहिया निकालने,
अर्जुन लगा युद्ध के नियमों को पालने,
भगवान ने कहा हे! पार्थ गर्दन उड़ा उसकी,
जब तक अंगराज उठे प्रहरण संभालने।

जैसे ही देखा कर्ण ने अर्जुन को शर संधान करते,
कहा उस कर्ण दानवीर ने धर्म का ध्यान धरते,
हे अर्जुन आज अगर तुम मुझ निहत्थे पर वार करोगे,
सोच लो आने वाले कल को क्या मुंह दिखलाओगे।
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