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बाल दिवस ( राधेश्यामी छंद )

सोच रहा इक नन्हा बालक,क्या से क्या मैं करता जाऊँ।
पंख लगाकर उड़ूँ गगन में,या नदियों-सा बहता जाऊँ ।।

बना कागज़ी इक जहाज मैं,निकल पड़ूँ परियों की नगरी।
चॉकलेट के पौधे रोपूँ ,या रबड़ी से भर दूँ गगरी ।।

जहाँ अंक की हो मत चिंता ,ऐसा कोई स्कूल बनाऊँ।
आसमान का हो बस काग़ज़,धरती के सब पेड़ बचाऊँ ।।

मिल जाए जो मुझे ख़ज़ाना,भर दूँ सबकी खाली झोली ।
इक दूजे से लड़े न झगड़े ,साथ रहे बनकर हमजोली।।

इच्छाएँ हैं अनगिन मेरी,कैसे इनको सच कर पाऊँ।
हो चिराग अलादीन वाला ,सब सपनों को पंख लगाऊँ।।

©️प्रिया 'ओमर'
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