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तबाही की दहलीज पर
आकर खड़े है
मत पूछो ये मंजर क्या है।।
बाहर से जरूर ठीक नजर आते हैं
सच पूछो मेरे अंदर क्या है।।
निकलते नहीं बूंद भर आंसू भी
मेरी आंखों से ज्यादा बंजर क्या है।।
और टुटे हुए सपनों का
दर्द इतना गहरा है, की
मत नापो ये समंदर क्या है..!!
।। Nishu।।
आकर खड़े है
मत पूछो ये मंजर क्या है।।
बाहर से जरूर ठीक नजर आते हैं
सच पूछो मेरे अंदर क्या है।।
निकलते नहीं बूंद भर आंसू भी
मेरी आंखों से ज्यादा बंजर क्या है।।
और टुटे हुए सपनों का
दर्द इतना गहरा है, की
मत नापो ये समंदर क्या है..!!
।। Nishu।।