...

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आकर्षण
नहीं मालूम तुम्हारे शब्दों से तुम्हें मढ़ा मैंने
या तुम्हारे चेहरे की संजीदगी से
ना जाने शब्द, भाव थे या
तुम्हारा सलीक़ा भाया
या वाणी की कठोरता
और सीधी बात की थी माया

यूँ मेरे चरित्र पर आसानी से उँगली ना उठाओ
ख़ुद को देखो और अब ये मान जाओ
हर किसी के लिए ना वो शब्द, ना वो भाव हैं
तुम्हें जानके हमने समझा
ये बस तुम्हारे शब्दों से निकला
प्रेम का आविर्भाव है

कि ठीक है जो हमारी दुनिया अलग है
मगर दुनियादारी रखना भी क्या ग़लत है?
© Atul Mishra
#kalammishraki