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इक़रार के किस्से ☺️
सूखते गुलाबों में ओंस की बूंदों सी
मैं ठहर गई
जब महक तेरे इश्क़ की
मेरे जिस्म को महका गई
होश भी कुछ कुछ खोने लगा था
हल्का हल्का सा सुरूर
जब से छाने लगा था
हम रहे न अब हम
सब आपकी मेहरबानी है
बोलती है ये पायल निगोडी
होने को जैसे कोई मनमानी है
छोड़िए भी अब की सांझ ढलने को है
थाम लीजिए धड़कनों को
की अरमां मचलने को है
मदहोशी का आलम भी
और उस पर कहर ढाती आपकी सांसें
कहीं फिसल न जाएं हम जज़्बातों में आ कर
लबों से लब को सहारे की है गुंजाइशें
© Aphrodite
मैं ठहर गई
जब महक तेरे इश्क़ की
मेरे जिस्म को महका गई
होश भी कुछ कुछ खोने लगा था
हल्का हल्का सा सुरूर
जब से छाने लगा था
हम रहे न अब हम
सब आपकी मेहरबानी है
बोलती है ये पायल निगोडी
होने को जैसे कोई मनमानी है
छोड़िए भी अब की सांझ ढलने को है
थाम लीजिए धड़कनों को
की अरमां मचलने को है
मदहोशी का आलम भी
और उस पर कहर ढाती आपकी सांसें
कहीं फिसल न जाएं हम जज़्बातों में आ कर
लबों से लब को सहारे की है गुंजाइशें
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