...

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पाबंदियांँ
छाँव में बर्दाश्त की फलती पाबंदियाँ l
रंग बदल बदल संग चलती पाबंदियाँ ।

धड़कन बेफ़िक्र सी साँसें बेजान सी..
पर हिसाब साँस का रखती पाबंदियाँ l

चलती हैं ये मिरे साथ साथ हर कदम...
जागीर समाज की बनती पाबंदियाँ ।

बांधकर सही गलत दायरे रिवाज़ के ,
रोज नई मनमानी करती पाबंदियाँ ।

अक़्स रंग ख़्वाब में उम्र के पड़ाव में,
आज हर लिबास में जँचती पाबंदियाँ ।
© zia