बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी.....
बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी ।
हर रोज बुनती थी सपने कैद से निकल जाने की ,
समाज की बड़ियों ने जकड़ रखा था उसे ,
परिवार की मान मर्यादा का ताला लगा था कमरे में ,
सारी इज्जत का बोझ लाद दिया उसके कंधो पर ,
फिर भी वह हिम्मत दिखा कर उठ खड़ी हुई,
खोलना चाहा ताला कोठरी का ,
फिर सामने आ खड़ी हुई दीवार बनकर परिवार की मर्यादा ,
सहम गई वह ये सोच कर
कर लेती फिर से खुद को उन बेड़ियों में कैद ,
सिसकती हुई जमी पर बैठ गई
अंदर ही अंदर घुट गई ,
बह रहे थे आंसू , हिम्मत नहीं करती उन्हें पोछने की ।
बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी
पर क्या करती वह खुद को तो बांध लिया उसने बंधन में ,
सपनो को न बांध सकी ,
आखिर वह भी खुले आसमान में उड़ ना चाहती ,
पर कैसे तोड़े उन समाज की बड़ियों को ,
कैसे लांघे उस दरवाजे...
हर रोज बुनती थी सपने कैद से निकल जाने की ,
समाज की बड़ियों ने जकड़ रखा था उसे ,
परिवार की मान मर्यादा का ताला लगा था कमरे में ,
सारी इज्जत का बोझ लाद दिया उसके कंधो पर ,
फिर भी वह हिम्मत दिखा कर उठ खड़ी हुई,
खोलना चाहा ताला कोठरी का ,
फिर सामने आ खड़ी हुई दीवार बनकर परिवार की मर्यादा ,
सहम गई वह ये सोच कर
कर लेती फिर से खुद को उन बेड़ियों में कैद ,
सिसकती हुई जमी पर बैठ गई
अंदर ही अंदर घुट गई ,
बह रहे थे आंसू , हिम्मत नहीं करती उन्हें पोछने की ।
बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी
पर क्या करती वह खुद को तो बांध लिया उसने बंधन में ,
सपनो को न बांध सकी ,
आखिर वह भी खुले आसमान में उड़ ना चाहती ,
पर कैसे तोड़े उन समाज की बड़ियों को ,
कैसे लांघे उस दरवाजे...