...

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अक्षामा
ऐसे ही नहीं बनता कोई अक्षामा -
अपने ज़मीर को जगाना पड़ता है !
अपनों का लहू जब गिरता है ;
इक हूक-सी दिल में उठती है !
गिरे हुए लहू का इक-इक कतरा
तब रक्तबीज बन फलता है !
जब गांधी को आंधी छलती है
और दुनिया आंखें मलती है !
जब मानवता की एक छोटी-सी
गलती जब बढ़कर गलता बनती है !
तब लामा भी गामा बनता है ;
श्यामा तब रामा बनता है !
रामा अक्षामा बनता है !
श्यामा अक्षामा बनता है !
ओबामा अक्षामा बनता है !
हाँ !ओबामा अक्षामा बनता है ..!!


© Brijendra Kanojia