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एक धन्यवाद पत्र सभी शिक्षकों के नाम!
सीखने व सिखाने की कोई निश्चित उम्र निर्धारित नहीं होती व ना ही कुछ सिखाने के लिए पेशेवर रूप से शिक्षक होना आवश्यक है। जीवन में प्रतिदिन हमें किसी ना किसी से कुछ नया सीखने को मिलता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि सिखाने वाला उम्र में हमसे बड़ा ही हो। कभी-कभी हमसे छोटे भी हमें बहुत बड़ी सीख दे जाते हैं। अक्सर हम अनजाने में ही कभी किसी के गुरु बनते हैं तो कभी शिष्य।
जैसे लेखन क्षेत्र में ही प्रतिदिन हम सभी लेखक एक-दूसरे की रचनाएँ पढ़ते हैं व उनसे प्रेरणा लेते हैं। इसमें सभी लेखक उम्र, अनुभव व योग्यता में एक समान नहीं होते। दूसरे लेखक की रचनाओं से हमें अक्सर कुछ नए शब्द, लेखन का कोई नया तरीका या कोई नई विचारधारा सीखने को मिलती है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सीखने वाला लेखक सिखाने वाले से उम्र, अनुभव या योग्यता में छोटा ही हो। कभी-कभी वर्षों के अनुभवी लेखकों को भी नए लेखकों से कोई ना कोई ज्ञान अवश्य मिलता है। लेकिन सीखने व सिखाने का यह सिलसिला मात्र लेखन क्षेत्र तक सीमित नहीं है। सभी क्षेत्रों में यह ज्ञान-चक्र यूँ ही कार्य करता है।
मेरे जीवन में ज्ञान की धारा का प्रवाह करने वाले उन सभी छोटे-बड़े गुरुओं को मेरा सादर धन्यवाद!

© सृष्टि स्नेही


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