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बचपन और राम लीला
#स्मृति_कविता
स्मृतिया हैं जहन में आज भी
नवरात्रि के नव रातों की
सर्द नरम सहलाती सी कोमल हवाए
निकलते ही घरों से अंधेरे भी हमें डराये
पकड कर हाथ इक दूजे का झुंड में चलते थे जब
जोश नई जग जाए रामलीला प्रांगण में पहुच तब
समय बाकी हो अभी तो आख मिचौली खेलते थे
घेर कर स्थान अपना सबसे आगे बैठते थे
समझ में धुधंले थे दोहे चौपाई और सारे प्रसंग
रंगमंच से मतलब नहीं हमें तो भाता था दोस्तों का संग
दूध मलाई चॉकलेट मूमफालिया पापा से मगवाते थे
कथा हुई प्रारंभ और हम सो जाते थे
Rupali Shrivastav
© Rupali Shrivastav
स्मृतिया हैं जहन में आज भी
नवरात्रि के नव रातों की
सर्द नरम सहलाती सी कोमल हवाए
निकलते ही घरों से अंधेरे भी हमें डराये
पकड कर हाथ इक दूजे का झुंड में चलते थे जब
जोश नई जग जाए रामलीला प्रांगण में पहुच तब
समय बाकी हो अभी तो आख मिचौली खेलते थे
घेर कर स्थान अपना सबसे आगे बैठते थे
समझ में धुधंले थे दोहे चौपाई और सारे प्रसंग
रंगमंच से मतलब नहीं हमें तो भाता था दोस्तों का संग
दूध मलाई चॉकलेट मूमफालिया पापा से मगवाते थे
कथा हुई प्रारंभ और हम सो जाते थे
Rupali Shrivastav
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