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एक ग़ज़ल उसके नाम 🖤
अखबारें हर रोज किस्से मुख़्तसर सुनाती है
विशाल ज़ालिम ज़िन्दगी हमें अक्सर रुलाती है

काफ़िर ज़िन्दगी भी तो उसकी ही तरह है
हुसन पर ऐतराती कमबख्त बेवज़ह सताती है

ना चाहने की कोई वजह भी तो नहीं
माना थोड़ी ज़िद्दी मगर आरज़ू है वही

वोह इज़हार ऐ दिल बयान करने से घबराती है
मेरे हर अशार पर उसकी साँसे थम जाती हैं

कभी खुद से कभी दुनिया कभी मुझसे छुपाती है
अपनी खाला से मुझे काबिल शायर बताती है

मेरे वोह शायर हैं मुक्तलिफ़ सहेलियों को बताती है
मेरे किस्से मेरी ग़ज़लें बड़े चाब से पढ़कर सुनाती है

मोहोब्बत उसे है मुझसे इज़हार करने में शर्माती है
परेशान मैं होता हूँ और आँखें उसकी भर आती हैं

विशाल शर्मा