...

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रात नाराज़ है।
रात नाराज़ है;
कुछ यूं मुझसे,
अब ख्वाब भी,
छीनकर दूर ले गई;
मैं ढूंढती रही अपने,
सपनों को;
जैसे प्यासी धरती,
बारिश के इंतजार ,
में आसमान;
को तकती रही।
© Tinki
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