दुखद मन से
कुछ स्त्रियां स्वयं से विलग कर रख देती है नियम,संयम,और सम्मान
इन सब को मसलते हुए
उन सब को बना कर हथियार
एक पुरुष के विरुद्ध
रचती हैं झूठा स्वांग
क्या यह अनुचित नहीं है
कर देती हैं भ्रमित
अपनी मासूमियत से
अश्रुओं से, उग्र हो जाती हैं
जानकर सीधा पुरुष को
भरपूर प्रयास किया जाता है
उस पुरुष को झुठलाया जा सके
स्वयं पर नियंत्रण खो
हो जाती है हावी
उस पुरुष पर जो
चीख कर व्यथित मन से
बस मौन चीखता रह जाता है
दब के उस बढ़ती भीड़ में
वो स्वयं को सत्य सिद्ध करने की
कोशिश में पार कर जाती हैं हर सीमा
अपने सम्मान को कुचलते हुए...
इन सब को मसलते हुए
उन सब को बना कर हथियार
एक पुरुष के विरुद्ध
रचती हैं झूठा स्वांग
क्या यह अनुचित नहीं है
कर देती हैं भ्रमित
अपनी मासूमियत से
अश्रुओं से, उग्र हो जाती हैं
जानकर सीधा पुरुष को
भरपूर प्रयास किया जाता है
उस पुरुष को झुठलाया जा सके
स्वयं पर नियंत्रण खो
हो जाती है हावी
उस पुरुष पर जो
चीख कर व्यथित मन से
बस मौन चीखता रह जाता है
दब के उस बढ़ती भीड़ में
वो स्वयं को सत्य सिद्ध करने की
कोशिश में पार कर जाती हैं हर सीमा
अपने सम्मान को कुचलते हुए...