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अस्थि कलश से प्रचार
अब सियासत से इतना, प्यार कर लेते हैं लोग,
अस्थि कलश से भी, प्रचार कर लेते हैं लोग।

इन मरे हुए सांपों को, अब कौन गले में ड़ाले,
ये सोचकर बुज़ुर्गों से, तकरार कर लेते हैं लोग।

अब ये समझ नहीं आता, इंसान कहूं कि गिद्ध,
लाशों का भी देखो, व्यापार कर लेते हैं लोग।

हिंदू-मुसलिम दंगों में, ख़ूं की नदियां बहाकर,
सूने आंगन में अपने, बहार कर लेते हैं लोग।

बड़ी बेबाक शिद्दत से, लाशों के ढ़ेर पे चलके,
उड़ान अपने सपनों की, पार कर लेते हैं लोग।

कभी राम मंदिर का, तो कभी कालेधन का मुद्दा,
इन जुमलों पे अपनी, सरकार कर लेते हैं लोग।

बांट रहे हैं देशद्रोही, देशभक्ति के प्रमाण-पत्र,
मॉब लिंचिंग में छुपकर, वार कर लेते हैं लोग।

हां जिनके गल्लों में, पड़े हों मात्र चंद चिल्लर,
उन्हीं दुकानों पे अपनी, उधार कर लेते हैं लोग।

‘मद' तहरीर के ख़िलाफ़, चल रही है साज़िश,
मनगढ़ंत बातों को यूंही, तैयार कर लेते हैं लोग।
मानव दास 'मद'✍
© manavdass@gmail