...

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सूर्यवान संघर्ष
तुम तैर नहीं रहे हो,
डूबने के लिए
सूरज रोज़ ढलता है,
उगने के लिए
दो कदम पीछे हुए,
तो क्या हुआ ?
ये सबक थी ज़िंदगी की,
के कोई उम्र नहीं होती
सीखने के लिए
ये हवाएं,फिजाएं
सब कह रही हैं,
तुम गिरे ही थे
उठने के लिए।
© अन्वित कुमार

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