...

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सच में...
जब कभी बैठूं तन्हाई में
और सोचूं अपने बारे में
मैं कौन हूं कहां से आई हूं?
मुझे किसने भेजा इस दुनिया ए फानी में ।

तो आते हैं अपने आप मेरे जेहन में
एक ऐसे ख्याल, मैं खो जाती जिसमें
फिर मैं सोचती,क्या यह सच है?
फिर मुझे हालात बताते,ऐसा ही है बिल्कुल सच में।

खयाल कुछ यूं हुआ करते थे असल में
कि मेरी खुदी बोलती, क्या कोई मनुष्य है ऐसा दुनिया में
जिसने आज तक किसी इंसान को बनाया हो?
या कोई भी प्रकृति हो उसके बस में ।

*नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं*


तो ज़रूर कोई ऐसी ताकत है सच में
जो कुछ भी नहीं इंसान के बस में
जो कुछ भी है इंसान की सोच से ऊपर
वह हस्ती सब कुछ कर पाती है सच में।

उसी ने दुनिया बनाई अपनी कुदरत में
उसी ने दुनिया सजाई अपनी खिलकत में
उसी ने चांद,सितारे ,सूरज,दरिया बनाएं
वही इंसान को भी आज़मा रहा है,भेजकर दुनिया में।

फिर मैं खुद से पूछती हूं, है क्या ऐसा सच में
क्या वही दुनिया का सबसे बड़ा खुदा है,सच में
तो क्यों नहीं मानती दुनिया? उसी को अपना खुदा
मुझे लगता है कि इंसान ही नासमझ है असल में ।



S@ffas