ज़िन्दगी और स्याही
स्याही की तरह ही है ज़िन्दगी।
कभी रुक-रुक कर चलती है,
तो कभी सरपट दौड़ जाती है।
कभी फिसलने सी लगती है,
तो कभी एक जगह खड़ी हो जाती है।।
और इन सब में मै भूल ही जाती हूं,
कि अब धीरे-धीरे खत्म सी हो रही है।।
मेरी ज़िन्दगी की स्याही,
और कलम की कालिमा।।
#Parul_writing_area
@parul
कभी रुक-रुक कर चलती है,
तो कभी सरपट दौड़ जाती है।
कभी फिसलने सी लगती है,
तो कभी एक जगह खड़ी हो जाती है।।
और इन सब में मै भूल ही जाती हूं,
कि अब धीरे-धीरे खत्म सी हो रही है।।
मेरी ज़िन्दगी की स्याही,
और कलम की कालिमा।।
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