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भय (डर)
#shadow #shadowpoems
एक भय है जो मुझको सताता है
एक भय है जो मुझको डराता है
ना जानु उसे मैं
फिर भी क्यो मुझे रुलाता है
एक भय है जो मुझको सताता है
इस अनजाने भय से कांपता हूं मैं रातों में
इस आंख मिचौली से भागता हूं मैं रातों में
ये वो आक्रमण है जो मेरा अपना है
ये वो शत्रु है जो मुझमें समा है
मैं खुद का ही दुश्मन मैं खुद का ही विरोधी हूं
न जाने क्यूं मैं इतना क्रोधी हूं
अपनो को पहुंचा न दूं क्षति इसी भय से डरता हूं
इसीलिए तो सभी से दूर में रहता हूं
पर फिर भी जाने क्यों मुझे ये सताता है
फिर भी जाने क्यूं मुझे ये डराता है
एक भय है जो मुझे डराता है
© shadow
एक भय है जो मुझको सताता है
एक भय है जो मुझको डराता है
ना जानु उसे मैं
फिर भी क्यो मुझे रुलाता है
एक भय है जो मुझको सताता है
इस अनजाने भय से कांपता हूं मैं रातों में
इस आंख मिचौली से भागता हूं मैं रातों में
ये वो आक्रमण है जो मेरा अपना है
ये वो शत्रु है जो मुझमें समा है
मैं खुद का ही दुश्मन मैं खुद का ही विरोधी हूं
न जाने क्यूं मैं इतना क्रोधी हूं
अपनो को पहुंचा न दूं क्षति इसी भय से डरता हूं
इसीलिए तो सभी से दूर में रहता हूं
पर फिर भी जाने क्यों मुझे ये सताता है
फिर भी जाने क्यूं मुझे ये डराता है
एक भय है जो मुझे डराता है
© shadow
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