...

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ठुकराना मेरा मिजाज़ नहीं..
मैं रुसवा ताज इमारत से,
हर मोह भरी इबारत से,
तेरी दिलनशीन चाहत से,
ख्वाबीदा तेरी इजाज़त से...

यह दिल कमतरीन,
जुदा है इफ़्तिख़ार से..
मैं ना चाहूं किसी को देखना,
जो उल्फ़त में बेशुमार से..

मुझे खेद मेरी रुसवाई से,
माफी मांगू उसकी तन्हाई से,
जिसने हर्फ किया स्वीकार,
पर नहीं मिला इकरार...

ठुकराना मेरा मिजाज़ नहीं,
वोह तो तेरी आगोश के संग,
परवाज़ हुए मेरे अंदाज कहीं ...
© Harf Shaad